शिक्षा मित्रो के लिए सुप्रीम कोर्ट का ही सहारा

शिक्षामित्रों को फिर जोर का झटका लगा है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री ने उन्हें राहत दिलाने से साफ इनकार कर दिया। वाराणसी में प्रदर्शन भी बेनतीजा रहा। फिर भी शिक्षामित्र न हताश हैं और न हार मानी है बल्कि शिक्षक बनने के लिए रणनीति के तहत आगे बढ़ने का निर्णय किया है। हालांकि एनसीटीई ने पहले ही शिक्षामित्रों को शिक्षक मानने से इनकार किया है। ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीद बची है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 सितंबर को प्रदेश के एक लाख 43 हजार से अधिक शिक्षामित्रों का सिर्फ समायोजन ही अवैध नहीं किया था बल्कि उनकी नियुक्ति पर कई सवाल उठाकर ऐसी घेराबंदी कर दी है कि उससे निकलना मुश्किल नजर आ रहा है। उम्मीद की किरण यह थी कि कुछ दिनों बाद हाईकोर्ट ने दूरस्थ विधि से प्रशिक्षण को सही ठहरा दिया था। इसी के बाद से सरकार टीईटी में छूट पाने के लिए पैरवी में जुटी थी, लेकिन एनसीटीई ने अपना पुराना जवाब ही नए शब्दों में दोहरा दिया है कि 25 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त एवं तब से लगातार सेवारत शिक्षकों को ही टीईटी उत्तीर्ण करने से छूट होगी। स्पष्ट है कि शिक्षामित्रों को कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि 2010 में वह भले ही विभाग से जुड़ गए थे, लेकिन संविदाकर्मी के रूप में। दूरस्थ प्रशिक्षण मान्य होने के बाद यदि उन्हें टीईटी से छूट मिल भी जाती तो भी शिक्षक बनने की उनकी राह आसान नहीं है।

अदालत ने ग्राम प्रधान के हाथों नियुक्ति होने पर भी सवाल उठाया था। उल्लेखनीय है कि शिक्षकों का नियुक्ति अधिकारी बेसिक शिक्षा अधिकारी होता है।  आरक्षण पर भी सवाल उठे हैं। तमाम इंटरमीडिएट उत्तीर्ण शिक्षा मित्रों का मामला भी है। प्रदेश सरकार इन बिंदुओं का वाजिब जवाब आज तक खोज नहीं पाई है। इसीलिए अब तक शिक्षामित्रों को वेतन देने का कोई रास्ता नहीं निकाला गया है। बेसिक शिक्षा की प्रमुख सचिव ने तो वेतन न देने का आदेश तक जारी कर दिया। शिक्षामित्रों की नाराजगी बढ़ने पर सरकार ने भले ही प्रमुख सचिव का आदेश वापस ले लिया है, लेकिन वेतन का मामला अब तक अधर में अटका है।

इसी बीच केंद्रीय मंत्री कठेरिया ने स्पष्ट कर दिया है कि केंद्र सरकार शिक्षामित्रों के लिए अलग से कुछ करने नहीं जा रही है। इससे अब सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीदें बची रह गई हैं।

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